भारत में 2005 में अधिनियमित सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, एक ऐतिहासिक कानून है जो नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों से सूचना प्राप्त करने का अधिकार देता है। इसका उद्देश्य सरकारी कामकाज में पारदर्शिता, जवाबदेही और खुलेपन को बढ़ावा देना है।
आरटीआई अधिनियम के प्रमुख पहलुओं में शामिल हैं:
सूचना तक पहुँच का अधिकार: नागरिक किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण से सूचना का अनुरोध कर सकते हैं, जिसे निर्धारित समय सीमा (आमतौर पर 30 दिन) के भीतर जवाब देना होगा।
सार्वजनिक प्राधिकरण: इसमें प्रशासनिक कार्यालय, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम और सरकार द्वारा पर्याप्त रूप से वित्तपोषित गैर सरकारी संगठन सहित सभी केंद्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारी निकाय शामिल हैं।
सूचना प्रकटीकरण: सार्वजनिक प्राधिकरणों को अनुरोध का इंतजार किए बिना बजट विवरण, नीतियों और निर्णयों सहित महत्वपूर्ण जानकारी का सक्रिय रूप से खुलासा करना चाहिए।
छूट: कुछ जानकारी, जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा विवरण या व्यक्तिगत जानकारी जो गोपनीयता का उल्लंघन कर सकती है, प्रकटीकरण से छूट प्राप्त है।
दंड प्रावधान: अधिनियम उन सार्वजनिक अधिकारियों के लिए दंड प्रदान करता है जो सूचना प्रदान करने से इनकार करते हैं या जानबूझकर जवाब देने में देरी करते हैं।
स्वतंत्र निरीक्षण: केंद्रीय और राज्य सूचना आयोग आरटीआई आवेदनों से संबंधित अपीलों और शिकायतों की सुनवाई के लिए स्वतंत्र निकायों के रूप में कार्य करते हैं। आरटीआई अधिनियम नागरिकों को शासन के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने और अधिकारियों को जवाबदेह बनाने का अधिकार देता है, जिससे अधिक पारदर्शी और लोकतांत्रिक समाज को बढ़ावा मिलता है।
वरुण जोनवाल
प्रधानाचार्य